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बी.एड. सेमेस्टर-1 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2699
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य

प्रश्न- वृद्धि और विकास को परिभाषित करें तथा वृद्धि एवं विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।

उत्तर -

जब एक छोटा पौधा, जो अंकुर बनकर फूटता है कुछ ही दिनों व वर्षों में पौधे या वृक्ष का रूप धारण कर लेता है, फिर हम कहते हैं कि देखो इस पौधे की वृद्धि हो गई, यह पेड़ बन गया। इसी तरह माँ के गर्भ में बच्चे की जब से जीवन लीला शुरू होती है, तब से लेकर मृत्यु तक उसमें वृद्धि और विकास की प्रक्रिया चलती रहती है। अतः हम कह सकते हैं कि किसी भी जीव के लिए वृद्धि व विकास - बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। वैसे तो वृद्धि व विकास में चोली-दामन का सम्बन्ध है, जिन्हें अलग करना संभव नहीं है, फिर भी इनके अर्थों को व इनके बीच का अंतर समझने के लिए दोनों को अलग-अलग जानना अति आवश्यक है।

वृद्धि का अर्थ - 'वृद्धि' शब्द का प्रयोग व्यक्ति के शरीर, आकार, भार आदि में वृद्धि के सन्दर्भ में किया जाता है। इस वृद्धि में व्यक्ति की मांसपेशियों और शरीर की साधारण वृद्धि भी शामिल होती है। अतः हम कह सकते हैं कि वृद्धि की मुख्य विशेषता यह होती है कि इसे नापा, तोला व देखा जा सकता है। वृद्धि के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए फ्रैंक ने कहा है- "शरीर के किसी विशेष पहलू में जो परिवर्तन होता है, उसे वृद्धि कहते हैं।"

विकास का अर्थ - बच्चे के शरीर की वृद्धि होने के साथ-साथ ही उसका मानसिक विकास भी होता रहता है अर्थात् बालक की वृद्धि के साथ-साथ उसकी विकास की प्रक्रिया भी चलती रहती हैं। शिशु के शारीरिक एवं मानसिक विकास के परिणामस्वरूप उसके व्यवहार में परिवर्तन दिखाई देते हैं और साथ ही उसमें विभिन्न प्रकार की योग्यताओं एवं शीलगुणों का उदय होता रहता है। बालक की बाल्यावस्था में विकास के पश्चात् उसमें विभिन्न प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं। बाल्यावस्था में बालक में होने वाला यह विकास उसके भावी जीवन के लिए दिशा प्रदान करता है। इस प्रकार से धीरे-धीरे एक नन्हा शिशु बढ़ते-बढ़ते एक जिम्मेदार नागरिक अथवा वयस्क का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार विकास की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है तथा व्यक्ति के व्यवहार को जीवन भर दिशा प्रदान करती रहती है अतः विकास के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा जा सकता है कि प्राणी में घटित होने वाले विभिन्न प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तनों के साथ-साथ गुणों तथा विशेषताओं की नियमित और क्रमिक उत्पत्ति को मनोविज्ञान की भाषा में 'विकास' के नाम से जाना जाता है।

इंगलिश तथा इंगलिश के अनुसार "विकास शरीर व्यवस्था में एक लम्बे समय में होने वाले सतत् परिवर्तन का एक अनुक्रम है। विशेषतया मानव में इस प्रकार के परिवर्तन अथवा सम्बन्धित और स्थायी विशेष परिवर्तन उसके जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त होते रहते हैं।"

हरलॉक ने विकास का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है "विकास का तात्पर्य ऐसे प्रगतिशील परिवर्तनों से है, जो नियमित और क्रमिक रूप से होते हैं।"

विकास के सिद्धान्त

विकास की प्रक्रिया बहुत ही विस्तृत और जटिल होने के कारण तथा इसकी निरन्तरता के कारण इसे कुछ सिद्धान्तों का अनुकरण करना पड़ता है। अर्थात् विकास के कुछ सिद्धान्त हैं, जिनको जाने बिना विकास की प्रक्रिया को समझना कठिन है। विकास के कुछ महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों का वर्णन निम्नलिखित है-

(i) निरन्तरता का सिद्धान्त - विकास की प्रक्रिया कभी न रुकने वाली प्रक्रिया है अर्थात् यह जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती ही रहती है। बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से तो विकास की प्रक्रिया माँ के गर्भ में ही शुरू हो जाती है। दो कोषों अर्थात् शुक्र और अंड के निषेचन के परिणामस्वरूप बने निषेचित अंड से जीवन लीला शुरू होती है और विभिन्न परिवर्तनों का अनुभव करते हुए यह निषेचित अंड मानव बनकर विकास के अन्य पक्षों की ओर बढ़ता है। इस प्रकार विकास की यह प्रक्रिया धीरे-धीरे तथा निरन्तर चलती रहती हैं लेकिन यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि विकास की निरन्तरता की गति एक समान नहीं रहती। इसमें भी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। इस सिद्धान्त से यह भी स्पष्ट होता है कि व्यक्ति में आया कोई भी परिवर्तन अचानक नहीं होता। आज दिखाई देने वाला परिवर्तन निरन्तरता के सिद्धान्त का अनुकरण करते हुए कुछ समय पहले शुरू हुआ होगा।

(ii) एकरूपता का सिद्धान्त - विकास की प्रक्रिया में एकरूपता दिखाई देती है, चाहे व्यक्तिगत विभिन्नताएँ कितनी भी हों। लेकिन यह एकरूपता विकास के क्रम के संदर्भ में होती है। उदाहरणार्थ- बच्चों में भाषा का विकास एक निश्चित क्रम से ही होगा, चाहे ये बच्चे विश्व के किसी भी देश के हों। बच्चों का शारीरिक विकास भी एक निश्चित क्रम में होगा अर्थात् यह विकास सिर से होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि बच्चों के विकास की गति में तो अन्तर हो सकता है, लेकिन विकास के क्रम में एकरूपता होती है। इसी प्रकार हम देखते हैं कि सभी बच्चों के दूध के दांत सबसे पहले टूटते हैं तथा दूसरे बाद में। इस प्रकार एक ही जाति के सदस्यों का विकास एक निश्चित क्रम या प्रतिमान द्वारा होता है।

(iii) वैयक्तिक भिन्नताओं का सिद्धान्त - मनोवैज्ञानिक वैयक्तिक भिन्नताओं के सिद्धान्त को बहुत महत्त्व देते हैं। चूँकि विकास प्रक्रिया को विभिन्न आयु वर्गों में बाँटा गया है तथा हर आयु वर्ग की अलग-अलग विशेषताएँ होती हैं, जिनके कारण हर आयु वर्ग के व्यवहारों में अन्तर होता है। इन अन्तरों की हम अनदेखी नहीं कर सकते। जुड़वाँ बच्चों में भी वैयक्तिक भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं। अतः सभी व्यक्तियों की वृद्धि और विकास उनकी अपनी स्वाभाविक गति से होता है। किसी व्यक्ति में कुछ विशेषताएँ या व्यवहार शीघ्र विकसित हो जाते हैं तथा कुछ व्यक्तियों में वही विशेषताएँ या व्यवहार देर से विकसित होते हैं। इस प्रकार उनमें पर्याप्त वैयक्तिक भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं। सभी बालक वृद्धि और विकास के संदर्भ में समानता नहीं रखते।
(iv) वंशानुक्रम और वातावरण के संयुक्त परिणाम का सिद्धान्त - बच्चे की वृद्धि और विकास वंशानुक्रम की ओर वातावरण का संयुक्त परिणाम है। विभिन्न अध्ययनों ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि बालक की वृद्धि और विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण का निश्चित रूप से प्रभाव पड़ता है। इन दोनों के प्रभाव को अलग नहीं किया जा सकता। वंशानुक्रम को बच्चे के व्यक्तित्व की नींव माना जाता है।

(v) समग्र विकास का सिद्धान्त - मनुष्य की शरीर का विकास समग्र रूप से ही होता है। मनुष्य के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों का विकास साथ-साथ चलता रहता है। जैसे सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक विकास। ऐसा भी सत्य है कि सभी पक्ष परस्पर इस विकास पर निर्भर करते हैं तथा एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। इस दृष्टि से अध्यापक को बालक के सभी पक्षों के विकास की ओर ध्यान देना चाहिए।

(vi) परिपक्वता और अधिगम का सिद्धान्त - वृद्धि और विकास की प्रक्रिया में परिपक्वता और अधिगम की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। परिपक्वता से वृद्धि और विकास प्रभावित होते हैं और ये प्रभावित हुए वृद्धि और विकास बदले में सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। कोई भी बालक किसी एक कार्य को करने के लिए परिपक्वता ग्रहण कर लेता है। लेकिन यह आवश्यक नहीं कि उसकी यह परिपक्वता अन्य कार्यों को करने के लिए उपयुक्त हो। अतः बच्चों में परिपक्वता के स्तर में भी भिन्नताएँ होती हैं। यही भिन्नताएँ उसकी अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं। उदाहरणार्थ, यदि कोई बालक किसी कार्य को सीखने के लिए अभिप्रेरित है, लेकिन उस कार्य के लिए अभी उसका भौतिक विकास पर्याप्त नहीं है तो वह बालक उस कार्य को सीखने में असमर्थ होगा और हमें उस बालक से अधिक आशाएँ रखनी भी नहीं चाहिए।

(vii) विकास की दिशा का सिद्धान्त - वृद्धि और विकास की अपनी ही दिशा होती हैं और यह दिशा निश्चित है। मानव के बच्चे का सबसे पहले 'सिर' प्रौढ़ आकार ग्रहण करता है तथा टाँगें सबसे बाद में। भ्रूण के विकास में यह सिद्धान्त बहुत ही स्पष्ट है। इस प्रकार विकास की निम्न दिशाएँ होती हैं-

(क) सिर से पाँव की ओर - मानव शिशु सिर से पाँव की ओर बढ़ता और विकसित होता है, न कि पाँव से सिर की ओर।
(ख) रीढ़ की हड्डी से बाहर की ओर - इसी प्रकार विकास का क्रम रीढ़ की हड्डी से शुरू होता है और फिर बाहरी विकास होना शुरू होता है। इस प्रकर हम कह सकते हैं कि भ्रूणावस्था में सबसे पहले     सिर का विकास होता है, फिर शरीर का निचला सिरा विकसित होता है। इसी प्रकार पहले सुषुम्ना नाड़ी का विकास होता है, फिर हृदय, छाती आदि भागों का विकास होता है।
(ग) स्वरूप के पश्चात क्रियाएँ - सर्वप्रथम शरीर के विभिन्न भाग विकसित होते हैं, फिर उसके पश्चात उनका प्रयोग किया जाता है। लेकिन उन्हें किसी विशिष्ट कार्य के लिए प्रयोग करने से पहले     इनकी माँसपेशियों का विकास हो जाना चाहिए।

(viii) वृद्धि और विकास की गति की दर में भिन्नता का सिद्धान्त - व्यक्ति की वृद्धि और विकास की विभिन्न अवस्थाएँ होती हैं। उन सभी अवस्थाओं के दौरान वृद्धि और विकास की गति की दर में भी भिन्नताएँ होती हैं। उन अवस्थाओं के दौरान विकास की गति दर एक समान नहीं होती। प्रारम्भिक अवस्थाओं में यह गति तीव्र होती है, लेकिन बाद में वह गति धीमी पड़ जाती है। प्रारम्भिक अवस्थाओं में शारीरिक वृद्धि और विकास की दर तीव्र होती है, लेकिन बाद में यह धीमी हो जाती है। फिर एक ऐसी अवस्था आ पहुँचती है कि शारीरिक वृद्धि रुक जाती है। लेकिन तब गुणात्मक विकास होता रहता है।

(ix) विकास की भविष्यवाणी का सिद्धान्त - अब अनुसंधान से यह भी स्पष्ट हो चुका है कि विकास की भविष्यवाणी करना अब संभव है। उदाहरणार्थ बालक की रुचियाँ, अभिरुचियाँ, वृद्धि इत्यादि।

(x) सामान्य से विशिष्ट की ओर विकास का सिद्धान्त - इस सिद्धान्त के अनुसार बालक पहले सामान्य व्यवहार सीखता है, फिर धीरे-धीरे यह सामान्य व्यवहार विशिष्टता की ओर बढ़ता है। उदाहरणार्थ, सबसे पहले बच्चा किसी वस्तु को पकड़ने का प्रयास करता है, तो वह अपने हाथ इधर- उधर मारने का प्रयास करता है। लेकिन धीरे-धीरे वह समय के साथ विशिष्टता की ओर बढ़ता है। इसके परिणामस्वरूप वह उसी वस्तु पर हाथ डालता है, जिसे वह उठाना चाहता है। इसी प्रकार बालक पहले सामान्य शब्द सीखता है, फिर विशिष्ट अक्षरों को पहले बच्चा सभी पक्षियों को चिड़िया कहकर ही सम्बोधित करता है, लेकिन समय के साथ-साथ वह विभिन्न पक्षियों के नाम सीख लेता है तथा उनके नामों से उन्हें पुकारना शुरू कर देता है।

(xi) एकीकरण का सिद्धान्त - इस सिद्धान्त के अनुसार पहले बच्चा सम्पूर्ण अंग को और फिर उसके विशिष्ट भागों को प्रयोग करना या चलाना सीखता है। फिर उन भागों का एकीकरण करना सीखता है। उदाहरणार्थ, पहले बच्चे पूरे हाथ को हिलाता है, फिर धीरे-धीरे हाथ को और उसकी उँगलियों को हिलाने का प्रयास करता है।

(xii) विकास की संचिता और पुनरावृत्ति का सिद्धान्त - विकास अनुभवों का कुल योग होता है, न कि केवल किसी एक ही अनुभव पर आधारित विकास पुनरावृत्ति वाला इसलिए होता है, क्योंकि विकास की प्रत्येक अवस्था की विशेषताओं की आवृत्ति दूसरी अवस्था में भी देखी जा सकती है। उदाहरणार्थ, बचपन का प्रेम किशोरावस्था में भी देखा जा सकता है।

(xiii) मूर्त से अमूर्त की ओर सोचने का सिद्धान्त - मानसिक विकास भौतिक रूप से उपस्थित वस्तुओं के बारे में चिन्तन करने की योग्यता से उन वस्तुओं को देखने के सिद्धान्त का अनुकरण करता है, जो अमूर्त रूप में होती हैं। बालक प्रभाव और कारण को समझने का प्रयास करता है।.

(xiv) बाहरी नियंत्रण से आन्तरिक नियंत्रण का सिद्धान्त - छोटे बच्चे मूल्यों और सिद्धान्तों के लिए दूसरों पर निर्भर करते हैं, जैसे ही वे बड़े होते हैं, उनकी स्वयं की मूल्य प्रणाली, स्वयं की आत्मा तथा उनका स्वयं का आन्तरिक नियंत्रण का समूह या सैट विकसित हो जाता है I

(xv) विकास में विभेदीकरण तथा एकीकरण की प्रक्रिया होती है - शिशु के रूप में व्यक्ति की क्रियाएँ ठोस अर्थात् एकीकृत होती हैं। इन क्रियाओं द्वारा व्यवहार के सामान्य, विशिष्ट एवं समन्वित प्रतिमान उत्पन्न होते हैं। विशिष्ट प्रतिमान नए और जटिल व्यवहार को सीखने के लिए पुनः एकीकृत होते हैं। विकास के दो सामान्य नियम होते हैं- प्रथम, विभेदीकरण तथा द्वितीय श्रेणीबद्ध एकीकरण। ये दोनों, नियम परस्पर निकट सम्बन्ध रखते हैं। बच्चों का शारीरिक विकास उनके नियन्त्रण की मात्रा में सुधार होना, क्रियात्मक कार्यों में विशिष्टता को दर्शाता है। शिशु शीघ्र क्रियात्मक समन्वय की अभिव्यक्ति करना शुरू कर देते हैं। पहले वे भुजाओं की क्रियाओं पर नियन्त्रण दिखाते हैं, फिर हाथ की क्रियाओं तथा अन्त में अंगुलियों की क्रियाओं का पूर्ण नियन्त्रण दिखाते हैं। यह नियन्त्रण बच्चों की शारीरिक क्रियाओं में विभेदीकरण कहलाता है। अनेक व्यक्तिगत क्रियाएँ जिनमें, बच्चा प्रवीणता प्राप्त कर लेता है, व्यवहार के अधिक जटिल एवं परिष्कृत प्रतिमानों के रूप में एकीकृत कर ली जाती है। वरनर ने इस प्रक्रिया को श्रेणीबद्ध - एकीकरण बताया है। इस प्रक्रिया का अर्थ है कि बच्चे के नए सीखे गए क्रियात्मक कौशल के अलग-अलग भागों को क्रियात्मक व्यवहार की पूर्ण इकाई के रूप में अधिकाधिक संगत ढंग से एकीकृत किया जाता है। उदाहरणार्थ, बच्चे द्वारा भुजाओं, टांगों एवं गर्दन की गतिविधियों पर पूर्णरूपेण नियन्त्रण करने (विभेदीकरण) के पश्चात् व इन विभेदी क्रियाओं में एकत्रित करता है जिसके फलस्वरूप अधिक जटिल एकीकृत व्यवहार उत्पन्न होता है, जैसे बच्चे द्वारा बिना सहारे के बैठना (श्रेणीबद्ध एकीकरण)। इसी प्रकार हम देखते हैं कि बच्चा प्रारम्भ में खाना खाते समय हाथों तथा चम्मच का अभद्र रूप से प्रयोग करता है तथा खाने का कुछ भाग नीचे भी डाल देता है। (विभेदीकरण)। परन्तु धीरे-धीरे वह पूर्ण दक्षता के साथ अंगुलियों या चम्मच की सहायता के बिना नीचे बिखरते हुए खाना शुरू करता है तथा साथ-साथ बातें भी करता है या समाचार पत्र पढ़ सकता है। हि एकीकरण' कहलाता है यह प्रक्रिया विकास के प्रत्येक पहलू में देखी जा सकती है, जैसे अंकों व अक्षरों को सीखा जाना, फिर साधारण प्रश्न एवं पंक्ति याद की जाती है तथा पूर्ण विकास के बाद जटिलतम समस्याओं का भी समाधान कर लिया जाता है। इस प्रकार, विकास प्रक्रिया में 'विभेदीकरण' एवं 'एकीकरण' की प्रक्रिया निरन्तर बनी रहती है।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ बताइये एवं इसकी प्रकृति को संक्षेप में स्पष्ट कीजिये।
  2. प्रश्न- मनोविज्ञान और शिक्षा के सम्बन्ध का विवेचन कीजिये और बताइये कि मनोविज्ञान ने शिक्षा सिद्धान्त और व्यवहार में किस प्रकार की क्रान्ति की है?
  3. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान की भूमिका या महत्त्व बताइये।
  4. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। शिक्षक प्रशिक्षण में इसकी सम्बद्धता क्या है?
  5. प्रश्न- वृद्धि और विकास से आपका क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- वृद्धि और विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- वृद्धि और विकास को परिभाषित करें तथा वृद्धि एवं विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- बाल विकास के प्रमुख तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- विकास से आपका क्या अभिप्राय है? बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन- कौन-सी हैं? विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन के महत्त्व को समझाइये।
  11. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
  12. प्रश्न- मनोविज्ञान एवं अधिगमकर्त्ता के सम्बन्ध की विवेचना कीजिये।
  13. प्रश्न- शैक्षिक सिद्धान्त व शैक्षिक प्रक्रिया के लिये शैक्षिक मनोविज्ञान का क्या महत्त्व है?
  14. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र स्पष्ट कीजिये।
  15. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के कार्यों को स्पष्ट कीजिये।
  16. प्रश्न- मनोविज्ञान की विभिन्न परिभाषाओं को स्पष्ट कीजिये।
  17. प्रश्न- वृद्धि का अर्थ एवं प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
  18. प्रश्न- अभिवृद्धि तथा विकास से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- विकास का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
  20. प्रश्न- वृद्धि तथा विकास के नियमों का शिक्षा में महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
  21. प्रश्न- बालक के सम्बन्ध में विकास की अवधारणा क्या है? समझाइये |
  22. प्रश्न- विकास के सामान्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  23. प्रश्न- अभिवृद्धि एवं विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  24. प्रश्न- बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं? उल्लेख कीजिए।
  25. प्रश्न- बाल विकास में वंशानुक्रम का क्या योगदान है?
  26. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है? इसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये। इस अवस्था में शिक्षा किस प्रकार की होनी चाहिये।
  27. प्रश्न- शैशवावस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  28. प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु को किस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिये?
  29. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है? बाल्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- बाल्यावस्था में शिक्षा का स्वरूप कैसा होना चाहिए? स्पष्ट कीजिए।
  31. प्रश्न- 'बाल्यावस्था के विकासात्मक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  32. प्रश्न- किशोरावस्था से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था के विकास के सिद्धान्त की. विवेचना कीजिए।
  33. प्रश्न- किशोरावस्था की मुख्य विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  34. प्रश्न- किशोरावस्था में शिक्षा के स्वरूप की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  35. प्रश्न- जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- शैशवावस्था की प्रमुख समस्याएँ बताइए।
  37. प्रश्न- जीन पियाजे के विकास की अवस्थाओं के सिद्धांत को समझाइये |
  38. प्रश्न- कोहलर के प्रयोग की विशेषताएँ लिखिए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक मनोविज्ञान एवं मानव विकास)
  40. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (मानव वृद्धि एवं विकास )
  41. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (व्यक्तिगत भिन्नता )
  42. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैशवावस्था, बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था )
  43. प्रश्न- सीखने की संकल्पना को समझाइए। 'सूझ' सीखने में किस प्रकार सहायता करती है?
  44. प्रश्न- अधिगम की प्रकृति को समझाइए।
  45. प्रश्न- सीखने की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
  46. प्रश्न- सूझ सीखने में किस प्रकार सहायता करती है?
  47. प्रश्न- 'प्रयत्न एवं त्रुटि' तथा 'सूझ' द्वारा सीखने में भेद कीजिए।
  48. प्रश्न- अधिगम से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक बताइए।
  50. प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के प्रयोग का उल्लेख कीजिए और बताइये कि इस प्रयोग द्वारा निकाले गये निष्कर्ष, शिक्षण कार्य को कहाँ तक सहायता पहुँचाते हैं?
  51. प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के सिद्धान्त के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के सिद्धान्त का शिक्षा में उपयोग बताइये।
  53. प्रश्न- शिक्षण में प्रयत्न तथा भूल द्वारा सीखने के सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिये।
  54. प्रश्न- 'अनुबन्धन' से क्या अभिप्राय है? पावलॉव के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया को नियंत्रित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  56. प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?
  57. प्रश्न- अनुकूलित अनुक्रिया से आप क्या समझते हैं? इस सिद्धान्त का शिक्षा में प्रयोग बताइये।
  58. प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
  59. प्रश्न- स्किनर का सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त क्या है? उल्लेख कीजिए।
  60. प्रश्न- स्किनर के सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- पुनर्बलन का क्या अर्थ है? इसके प्रकार बताइये।
  62. प्रश्न- पुनर्बलन की सारणियाँ वर्गीकृत कीजिए।
  63. प्रश्न- सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया. सिद्धान्त अथवा पुर्नबलन का शिक्षा में प्रयोग बताइये।
  64. प्रश्न- अधिगम के गेस्टाल्ट सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए और इस सिद्धान्त के सबल तथा दुर्बल पक्ष की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- समग्राकृति पूर्णकारवाद की विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- कोहलर के प्रयोग की विशेषताएँ लिखिए।
  67. प्रश्न- अन्तर्दृष्टि तथा सूझ के सिद्धान्त से सीखने की क्या विशेषताएँ हैं।
  68. प्रश्न- पूर्णकारवाद के नियम को स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- अन्तर्दृष्टि को प्रभावित करने वाले कारक एवं शिक्षा में प्रयोग बताइये।'
  70. प्रश्न- अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- रॉबर्ट मिल्स गेग्ने का जीवन-परिचय दीजिए तथा इनके द्वारा बताये गये सिद्धान्त का सविस्तार वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- गेग्ने के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- गेग्ने के योगदान को संक्षेप में बताइये।
  74. प्रश्न- विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर अभिप्रेरणा का अर्थ स्पष्ट करते हुए अभिप्रेरणा के प्रकारों का वर्णन कीजिए।।
  75. प्रश्न- अभिप्रेरणा के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं? उल्लेख कीजिये।
  77. प्रश्न- अभिप्रेरणा का क्या महत्त्व है? अभिप्रेरणा के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  78. प्रश्न- अभिप्रेरणा के विभिन्न सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- अभिप्रेरणा का मूल प्रवृत्ति सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- अभिप्रेरणा का मूल मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- अभिप्रेरणा का उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त को समझाइये |
  82. प्रश्न- शैक्षिक दृष्टि से अभिप्रेरणा का क्या महत्त्व है?
  83. प्रश्न- आवश्यकता चालन एवं उद्दीपन के सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
  84. प्रश्न- कक्षा शिक्षण में पुरस्कार या प्रोत्साहन की क्या आवश्यकता है?
  85. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण क्या है? अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार बताइये।
  86. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार बताइए।
  87. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण से क्या तात्पर्य है? अधिगम स्थानान्तरण को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।
  88. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण की दशाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  89. प्रश्न- अधिगमान्तरण के विभिन्न सिद्धान्तों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (अधिगम )
  91. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (अभिप्रेरणा )
  92. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (अधिगम का स्थानान्तरण )
  93. प्रश्न- विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर बुद्धि का अर्थ स्पष्ट करते हुये बुद्धि की प्रकृति या स्वरूप तथा उसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
  94. प्रश्न- बुद्धि की प्रकृति एवं स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- बुद्धि की विशेषताओं को समझाइये।
  96. प्रश्न- बुद्धि परीक्षा के विभिन्न प्रकार कौन-से हैं? वैयक्तिक व सामूहिक बुद्धि परीक्षा की तुलना कीजिये।
  97. प्रश्न- सामूहिक बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं?
  98. प्रश्न- शाब्दिक व अशाब्दिक तथा उपलब्धि परीक्षण को स्पष्ट कीजिये।
  99. प्रश्न- वाचिक अथवा अवाचिक वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण से क्या अभिप्राय है? उल्लेख कीजिये।
  100. प्रश्न- स्टैनफोर्ड बिने क्या है?
  101. प्रश्न- बर्ट द्वारा संशोधित बुद्धि परीक्षण को बताइये।
  102. प्रश्न- अवाचिक वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण के प्रकार बताइये।
  103. प्रश्न- वाचिक सामूहिक बुद्धि परीक्षण कौन-से हैं?
  104. प्रश्न- अवाचिक सामूहिक बुद्धि परीक्षणों का वर्णन कीजिये।
  105. प्रश्न- बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  106. प्रश्न- सृजनात्मकता से क्या तात्पर्य है? इसके स्वरूप तथा प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  107. प्रश्न- सृजनात्मक की परिभाषाएँ बताइए।
  108. प्रश्न- सृजनात्मकता के स्वरूप बताइए।
  109. प्रश्न- सृजनात्मकता से आप क्या समझते हैं? अपने शिक्षण को अधिक सृजनशील बनाने हेतु आप क्या करेंगे? विवेचना कीजिए।
  110. प्रश्न- सृजनात्मकता की परिभाषा दीजिए तथा सृजनात्मक छात्रों का पता लगाने की विधि स्पष्ट कीजिए।
  111. प्रश्न- सृजनात्मकता एवं समस्या समाधान पर टिप्पणी लिखिए।
  112. प्रश्न- कक्षा वातावरण किस प्रकार विद्यार्थियों की सृजनात्मकता के विकास को प्रभावित करता है? सृजनात्मकता को विकसित करने हेतु आप ब्रेनस्टार्मिंग का प्रयोग कैसे करेंगे?
  113. प्रश्न- गिलफोर्ड के त्रिआयामी बुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  114. प्रश्न- समूह कारक या संघसत्तात्मक सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  115. प्रश्न- बुद्धि के बहु-प्रकारीय सिद्धान्त की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
  116. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (बुद्धि एवं सृजनात्मकता )
  117. प्रश्न- व्यक्तित्व क्या है? उनका निर्धारण कैसे होता है? व्यक्तित्व की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- व्यक्तित्व के लक्षणों की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।
  119. प्रश्न- व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौन हैं?
  120. प्रश्न- व्यक्तित्व के जैविक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- व्यक्तित्व के विभिन्न उपागमों या सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  122. प्रश्न- समूह चर्चा से आपका क्या अभिप्राय है? समूह चर्चा के उद्देश्य एवं मान्यताएँ स्पष्ट कीजिए।
  123. प्रश्न- व्यक्तित्व मूल्यांकन की प्रश्नावली विधि को समझाइए।
  124. प्रश्न- व्यक्तित्वं मूल्यांकन की अवलोकन विधि से आप क्या समझते हैं?
  125. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ बताइए तथा छात्रों की मानसिक अस्वस्थता के क्या कारण हैं? शिक्षक उन्हें दूर करने में उनकी सहायता कैसे कर सकता है?
  126. प्रश्न- बालकों के मानसिक अस्वस्थता के क्या कारण हैं?
  127. प्रश्न- बालकों के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति के उपाय बताइये।
  128. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के विचार को स्पष्ट कीजिए। विद्यालय की परिस्थितियाँ शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
  129. प्रश्न- विद्यालय की परिस्थितियाँ शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
  130. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में कौन-सी विशेषता होती है?
  131. प्रश्न- मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में कौन-कौन-सी विशेषताएँ होती हैं?
  132. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य के उपायों पर प्रकाश डालिए।
  133. प्रश्न- कौन-कौन से कारक मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा रखने के उपाय बताइए।
  134. प्रश्न- शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के उपाय बताइये।
  135. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य के प्रमुख तत्व बताइये।
  136. प्रश्न- शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को उन्नत करने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं?
  137. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य का महत्व बताइये।
  138. प्रश्न- बालक के मानसिक स्वास्थ्य के विकास में विद्यालय की क्या भूमिका होती है?
  139. प्रश्न- बालक के मानसिक स्वास्थ्य में उसके कुटम्ब का क्या योगदान है?-
  140. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य के नियमों की विवेचना कीजिए।
  141. प्रश्न- मानसिक स्वच्छता क्या है?
  142. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (व्यक्तित्व )
  143. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (मानसिक स्वास्थ्य)

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